आप सोच रहे होंगे कि आज प्रकृति की बातें क्यों? वह इसलिए कि हम वर्तमान में जिस परिस्थिति में पहुंच गए हैं प्रकृति की बातें तो करनी ही है बल्कि मेरा मानना है कि प्रकृति के संग अपने आप को संलग्न कर लेना है। ख़ैर आज के Blog की शुरुआत करते हैं। 

       दो-चार दिनों से आदिमानव जैसी Feeling लग रही थी। तभी मेरे एक मित्र ने ये लिख कर भेजा:- 

आदिमानव जैसी हो गई है जिंदगी। 

ना ऑफिस ना स्कूल बस अपनी गुफा में रहो और सब्जी लेने जाओ तो ऐसा लगता है कि 

शिकार पर निकले हैं। 

     इसे पढ़कर Background में संगीत बजने लगा “दुनिया में कितना गम है मेरा गम कितना कम है।”

      मेरी समस्या कुछ अलग थी लॉक-डाउन की वजह से पिछले एकाध महीने से बाल नहीं कटवाए थे। स्थिति यह आने वाली थी कि संभालना मुश्किल लग रहा था। मुझे तो यह आश्चर्य लग रहा था कि महिलाएं कैसे अपने बालों को संभालती है। आज निर्णय कर लिए कि चाहे जो हो आज बाल (Hair) कटवा ही लेना है। घर से निकल तो गए, लेकिन सैलून खुला ही नहीं था। एकाध किलोमीटर का दौरा कर लिए। Morning Walk तो पूरा हो गया लेकिन सैलून खुला नहीं मिला। अक्सर नाई की दुकाने सड़क के किनारे ही होती है क्योंकि कोई भी राह चलते आसानी से देख सके और शायद यही वजह भी थी दुकानें बंद होने की। फिर सोचे की बरबीघा चले जाते हैं वहां कुछ ना कुछ विकल्प तो मिल ही जाएगा लेकिन बरबीघा में भी दुकानें 11:00 बजे तक ही खुलती है और उस समय 10:40 हो रहा था यानी वहां जाने से भी कुछ फायदा होने वाला नहीं था।

        मेरे कार्य स्थल के आसपास जंगल है या यूं कह लीजिए कि पेड़ो की संख्या कुछ ज्यादा है। कभी-कभी तो रात में बिजली के जाने के बाद ऐसा महसूस होता है कि किसी डरावनी फिल्म की शूटिंग होने वाली है। उसी जंगल में से कुछ आवाजे आ रही थी। मुझे समझते देर नहीं लगी कि वहां 15-20 लोग मौजूद हैं। जिज्ञासावश कि वे सभी कर क्या रहे होंगे? हम भी जंगल में प्रवेश कर गए। देखा कि कुछ बैठे हैं कुछ खड़े अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। सामने एक नाई ईंट सजाकर बेंच बनाया था और लोगों के बाल काट रहा था।

         मेरा नंबर कब आएगा? जब मैंने यह पूछा तो उसने बोला- बईठs थीन ना सर (बैठिए ना सर) वहां पर भले ही बैठने की कोई व्यवस्था ना हो लेकिन उसकी बातें मुझे अच्छी लगी। हम भारतीयों की यही तो खूबी है हम हर समस्या का समाधान ढूंढ ही लेते हैं। धीरे-धीरे सभी लोग अपना कार्य संपन्न करा चले जा रहे थे चूंकि हम वहां सबसे अंतिम में पहुंचे थे इसीलिए मेरा नंबर भी अंतिम में ही आया। वह तो अच्छा है कि इंटरनेट का युग है तीस मिनट का समय भी कैसे कट गया पता ही नहीं चला। हम अपने मोबाइल में इतने व्यस्त हो गए थे कि नाई को दो बार आवाज़ लगानी पड़ी।

      बाल काटने को भी हम एक कला मानते हैं। किस पर कौन सा हेयर स्टाइल अच्छा लगेगा वह एक नाई को बखूबी पता होता है। इसीलिए मैंने आज तक बाल कटवाते समय कभी भी नाई को नहीं बोला कि किस स्टाइल में काटना है। वह जैसा लुक प्रदान कर दे, हम सहज स्वीकार कर लेते हैं। शायद इसीलिए मेरे बालों का कोई एक लुक आज तक नहीं रहा। जब-जब नाई बदले तब-तब एक नया लुक प्राप्त हो गया और वैसे ही एक नया लुक आज प्राप्त होने वाला था। 

          नाई अपनी आदत के अनुसार पूछा कि बाल कैसे काटना है? क्योंकि वह बढ़े हुए बालों को देखकर समझ रहा था कि कोई नया लुक देना होगा। मैंने कहा- यह लॉकडाउन का असर है। आप को जो बेहतर लगे वैसा आप कर दीजिए। मेरी तो बस यही इच्छा है कि बाल छोटा हो जाए। उसने मुझे वहां पर रखी ईंट पर बैठने का इशारा किया ईंट पर हम बैठ गए और वह अपना कार्य शुरू कर दिया। जब तक वह बाल काट रहा था तब तक मैं अपने बचपन की यादों में चला गया कैसे रविवार हमारे लिए महत्वपूर्ण रहता था। प्रत्येक रविवार को एक हजाम (नाई) मेरे घर आता और वैसे ही ईंट या छोटा सा लकड़ी का बना जिसे हम लोग पिढ़ा बोलते थे उस पर बैठ बाल कटवाते थे। महीना में दो बार मेरा बाल कटता था। चाह कर भी कभी बाल बड़ा नहीं रख पाए शायद उसी इच्छा की पूर्ति इस लॉकडाउन में हो गई।

           सर!!! और छोटा कर दें? मैंने देखा- नाई एक हाथ में दर्पण और दूसरे में कैंची लेकर खड़ा था। मैंने दर्पण में देखा उसने बाल बहुत अच्छे से काटा था। नहीं-नहीं ठीक है, शुक्रिया। मैंने कहा।

         फिर उसने एक पुराने से डिब्बे से पाउडर निकाला और कान और गर्दन के पीछे वाले हिस्से में लगाने लगा। मैंने कहा:- यह पाउडर का डिब्बा कब का है? तब उसने कहा- मुझे तो अच्छे से याद नहीं लेकिन इसे बचपन से देख रहा हूं। मुझे तो बहुत आश्चर्य हुआ। आखिरकार ये पाउडर खत्म क्यों नहीं होता है। उसने कहा- पाउडर का डब्बा बड़ा सा आता है। इसमें से थोड़ा-थोड़ा निकाल कर इस छोटे डब्बे में लाते हैं। तब मैंने राहत की सांस ली। 

            मैंने उसे तय दर से कुछ ज्यादा पैसे दिये जब वह लौटाने लगा तो मैंने कहा- रख लीजिए। इस कठिन परिस्थिति में आप कार्य कर रहे हैं, मेरी तरफ से छोटा सा TIP समझिए। उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई जो कि मास्क में होने की वजह से मैंने उस मुस्कान को तो नहीं देखा लेकिन आंखों की चमक उसकी खुशी बयां कर रही थी। कभी-कभी मुझे लगता है कि एक इंसान को हमेशा जब समय मिले थोड़ी-थोड़ी खुशियां बांटते रहनी चाहिए। इसमें आपका बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होता है लेकिन सामने वाले की नजर में आप बहुत बड़े बन जाते हो। 

      शायद यही वजह रहा है कि आज भी जब हम अपने गांव सीवान, छपरा, पटना, बनारस या बरबीघा शेखपुरा कहीं भी जाते हैं हजारों लोग जान-पहचान के मिल जाते हैं। जिन से जाने-अनजाने दोस्ती हो गई है, चाहे वह कोई भी व्यवसाय कर रहे हो। Educational Line से अलग मेरी यह एक अलग दुनिया है जिसे मैं खुलकर जीता हूं। शायद इसीलिए मेरा मन हर जगह रम जाता है, चाहे परिस्थिति जैसी भी हो।

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