‘विष के दाँत’ आचार्य नलिन विलोचन शर्मा की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं सुप्रसिद्ध कहानी है, इसमें सामाजिक भेदभाव, लिंग-भेद, आक्रामक स्वार्थ की छाया में पलते हुर प्यार-दुलार के कुपरिणामों को दिखाते हुए सामाजिक समानता एवं मानवाधिकार का स्वर प्रमुखता से उभरा है। 

         कहानी सेन साहब के परिचय के साथ शुरू होती है। उनके पास एक नई मोटरकार है जो बंगले के सामने बरसाती में खड़ी है। सेन साहब के पाँच लड़कियाँ और एक लड़का है। उनकी लड़कियाँ सीमा, रजनी, आलो, शेफाली और आरती जहाँ तहजीब और तमीज की जीती-जागती प्रतिमाएं हैं, वहीं लड़का काशू उनके अपवाद स्वरूप मनबढू और तुनुकमिजाज है। इसका कारण सेन साहब और उनकी पत्नी का उसके प्रति जरूरत से अधिक प्यार दुलार है। एक दिन की बात है कि सेन साहब के ड्राइंग रूम में उनके कुछ दोस्त बैठे गपशप कर रहे थे। उनमें से एक पत्रकार थे, जिनका होनहार और समझदार बेटा भी साथ था। किसी ने उसकी ज्योंही बड़ाई की, सेन साहब अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनते हुए अपने बेटे को बड़ाई करते हुए उसे इंजीनियर बनने की बात करने लगे इस पर जब किसी ने पत्रकार महोदय से उनके बच्चे के विषय में पूछा तो उन्होंने बड़े संयत किन्तु व्यंग्यात्मक रूप में जवाब दिया कि “मैं चाहता हूँ कि वह Gentleman बस बने और जो कुछ बने, उसका काम है। “सेन साहब कटकर रह गये ‘तभी शोरगुल सुन सभी बाहर निकले। वहाँ सभी देखते हैं कि खेन साहब का शोफर एक औरत से उलझ रहा था, क्योकि उसका बच्चा मदन गाड़ी को छूना चाह रहा था। सेन साहब उस औरत को डाँटकर भगा देते हैं। इसके तुरंत बाद ही लोगों को मालूम होता है कि काशू ने सेन साहब की गाड़ी की पिछली बत्ती को चकनाचूर कर दिया है। इतना ही नहीं, उसने मिस्टर सिंह की गाड़ी की हवा भी निकाल दी हैं किन्तु सेन साहब उसे एक बार भी डाँटते-फटकारते नहीं, उल्टे उसकी बड़ाई करते हैं। जब उनके दोस्त चले गए तो उन्होंने गिरधर लाल जो मदन का पिता और फैक्टरी में किरानी था, को बुलाकर उससे अपने बेटे को सम्भालने की नसीहत देते हैं क्योंकि उनकी दृष्टि में ऐसे ही लड़के आगे चलकर गुण्डे, चोर और डाकू बनते हैं। सेन साहब की बात पर गिरधर लाल ने उस दिन रात में अपने बेटे को खूब पिटाई की। 

        लेकिन, दूसरे दिन अजीब बात हो गई। शाम के समय खोखा यानी काशू खेल-खेल में बंगले से बाहर बगलवाली गली में जा निकला, जहाँ मदन अपने पड़ोसी आवारागर्द छोकरों के साथ लटू नचा रहा था। खोखा को भी लटू नचाने का मन हुआ और उसने बड़े रौब के साथ लट्ट मांगा। पर, मदन पर उसके रोब का कोई असर नही हुआ। तब दोनों में झगड़ा शुरू गया। खाखा मदन का सामना न कर सका और मार खाकर भाग निकला। उधर मदन अपने पिता के डर के कारण दिन भर घर नहीं जाता हैं, इधर-उधर घूमता रहता है। आखिरकार रात होने पर जब वह घर पहुँचता है तो माँ-बाप की कानाफूसी को सुन अचरज में पड़ जाता है। इसी बीच उसका पैर लोटे से टकराता है, जिसकी ठनक सुन गिरधरलाल आकर आशा के विपरीत मदन को गोद में उठा शाबाशी देने लगा और कहा कि शाबाश बेटा!!! तूने तो खोखा के दो-दो दाँत तोड़ डाले। “इस प्रकार कहानी का बड़ा की अर्धगर्भित अंत हो जाता है।”


“अर्थगर्भित” का अर्थ:- जिसमें एक या कई अर्थ हो सकते हों; अर्थपूर्ण।
सारगर्भित; अर्थयुक्त।
अभिव्यक्तिपूर्ण।

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